बाबा ! को ऐसा जन जोगी | Sant Dadu Dayal Ji Ki Wani | दादू जी की वाणी

बाबा ! को ऐसा जन जोगी ।

अंजन छाड़े रहे निरंजन , सहज सदा रस भोगी ॥ टेक ॥ 

छाया माया रहै विवर्जित , पिंड ब्रह्मण्ड नियारे ।

चंद सूर तैं अगम अगोचर , सो गह तत्व विचारे ॥ १ ॥ 

पाप पुन्य लिपै नहिं कबहूँ , द्वै पख रहिता सोई । 

धरणि आकाश ताहि तैं ऊपरि , तहां जाइ रत होई ॥ २ ॥ 

जीवन मरण न बाँछे कबहूँ , आवागमन न फेरा । 

पानी पवन परस नहिं लागे , तिहिँ संग करै बसेरा ॥ ३ ॥ 

गुण आकार जहां गम नाँहीं , आपैं आप अकेला । 

दादू जाइ तहां जन जोगी , परम पुरुष सौं मेला ॥ ४ ॥

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