! म्हारा जनम मरण रा साथी थांने नहिं बिसरूं दिन राती !
म्हारा जनम मरण रा साथी , थांने नहिं बिसरूं दिन राती
थां देख्यां बिन कल न पड़त है , जाणत मोरी छाती ।
ऊंची चढ़ चढ़ पंथ निहारूं , रोय रोय अंखियां राती ।
...म्हारा जनम मरण...
ओ संसार सकल जग झंठो , झूठा कुल और न्याती ।
दोऊ कर जोड़यां , अरज करूं , सूण ल्यौ म्हारी बाती ।
...म्हारा जनम मरण रा...
ओ मन मेरो बड़ो हरामी , ज्यूं मद मातो हाथी |
सतगुरु हाथ धरियो सिर ऊपर ,अंकुश दे समझाती ।
...म्हारा जनम मरण रा...
पल पल पिव को रूप निहारूं , निरख निरख सुख पाती ।
मीरां के प्रभु गिरधर नागर , हरि चरणों चित्त राती ।
...म्हारा जनम मरण रा...
● भावार्थ -- कलयुग की मां श्री मीराबाई अपने प्रियतम भगवान श्री कृष्ण के विरह में प्रार्थना करती है की है मेरे जन्म और मृत्यु के साथी मैं आपको एक क्षण के लिए भी नहीं भूल सकती हूं । आपको देखे बिना मेरे जीवन का एक क्षण भी नहीं गुजरता है यह मेरी अंतरात्मा जानती है हे मेरे प्रियतम आप भी समझो इस बात को और दर्शन दो । ऊंचे से ऊंचा स्थान जहां मैं जा सकती हूं मैं जाकर आपको पुकार है ताकि आप सुन लो मेरी रो-रो कर आंखें लाल हो चुकी है । मैं दोनों हाथ जोड़कर आपके आगे निवेदन करती हूं कि यह संसार और सम्पूर्ण जग झूठा है यह कुल और नाते सभी झूठे हैं । आप ही मेरे सच्चे साथी हो आप अपना कर इस संबंध को अमर कर दो । मेरा मन एक मदमस्त हाथी के जैसे मनमौजी है हारामी है मेरे सतगुरु देव भगवान ने सिर पर हाथ रख कर इस मन पर अंकुश दिया है ताकि मैं परमात्मा के भजन निर्विरोध कर सकूं । प्रत्येक क्षण आपके रूप को निहारती हु और सुख पाती हूं मेरे प्रभु आप ही हो आप ही कृपा करो ताकि मेरी रति आपके श्री चरणों में ही लगी रहे ।।
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