मैं मैं करत सबै जग जावै - Sant Shri Dadu Dayal Ji Maharaj Ke Bhajan - Daduvani Ke Bhajan - Shri Dadu Dayal Ji Ki Wani

!! मैं मैं करत सबै जग जावै !!

मैं मैं करत सबै जग जावै , अजहूँ अंध न चेते रे । 

यह दुनिया सब देख दिवानी , भूल गये हैं के तेरे ॥

मैं मेरे में भूल रहे रे , साजन सोइ विसारा । 

आया हीरा हाथ अमोलक , जन्म जुवा ज्यों हारा !!

लालच लोभैं लाग रहे रे , जानत मेरी मेरा । 

आपहि आप विचारत नांहीं , तूं काको को तेरा !!

आवत है सब जाता दीसे , इनमें तेरा नांहीं । 

इन सौं लाग जन्म जनि खोवे , शोधि देख सचु मांहीं !!

निहचल सौं मन माने मेरा , सांई सौं बन आई । 

दादू एक तुम्हारा साजन , जिन यहु भुरकी लाई !!


- भगवान संत श्री दादू दयाल जी महाराज 


संत श्री छोटे बाबा एवं बड़े बाबा महाराज 



* भावार्थ - संत श्री दादू दयाल जी महाराज उपदेश द्वारा सावधान कर रहे हैं - मैं धनी , मैं बली , आदि अहंकार करते हुये जगत् के सभी प्राणी काल के मुख में जा रहे हैं , यह देख करके भी अभी तक मदांध प्राणी सचेत नहीं होते । यह सब संसार पागल है। इसे देखकर कितने ही विचारशील लोग भी अपना हित साधन करना भूल गये हैं। " मैं और मेरे " अभिमान में आकर अपना जो सच्चा स्वामी परमात्मा था , उसके उपकार को भूलकर उसे भी भूल रहे हैं। यह मनुष्य जन्म रूप अमूल्य हीरा हाथ में आया था किन्तु इसे भी जैसे जुआरी अपने धन को जुआ में हारता है , वैसे ही विषयों में खो रहा है। लोभ लालच में लग रहे हैं और जानते हैं — 'यह नारी मेरी है , यह धन-धाम मेरा है' , किन्तु अपने हृदय में स्वयं विचार नहीं करते कि तू किसका है और तेरा कौन है ! ये सब धनादि तो आते हैं और जाते हुये भी दीख रहे हैं। इनमें तो तेरा कुछ भी नहीं है। यदि तेरे हों तो तेरे हाथ से क्यों चले जाते हैं ? इनमें आसक्त होकर अपना जन्म व्यर्थ ही क्यों खोता है ? विचार द्वारा खोज करके देख , परम सुख तो तेरे भीतर ही है। हमारा मन तो उस निश्चल परमात्मा के भजन में ही सुख मानता है, उसी से हमारी सब बात ठीक बनी है। तुम सब भी याद रक्खो , जिस परमात्मा ने यह माया-मोहनी डाली है , वही तुम्हारा सच्चा मित्र है , अन्य सब तो स्वार्थ के ही साथी हैं।


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